शनिवार, 23 अक्तूबर 2021

इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने फर्जी पत्रकार के विरुद्ध की कारवाई, फर्जी पत्रकार देवेंद्र मराठा 6 महीने के लिए रासुका की हुई कार्यवाही

  

इंदौर कलेक्टर मनीष सिंह ने फर्जी पत्रकार के विरुद्ध की कारवाई, फर्जी पत्रकार देवेंद्र मराठा 6 महीने के लिए रासुका की हुई कार्यवाही


 ANI NEWS INDIA

🔷 फर्जी वसूलीबाज कथित पत्रकार जबलपुर के बादल पटेल, नीमच के नरेंद्र गहलोत, अविनाश जाजपुर के विरुद्ध रासुका की कार्रवाई करने की उठने लगी मांग
🔷 अड़ीबाजो की पत्रकार गैंग जबलपुर के बादल पटेल फर्जी आइसना के प्रदेश सेक्रेटरी ( करीब 8 केस दर्ज क्रिमिनल ), नरेंद्र गहलोत फर्जी आइसना के प्रदेश कोषाध्यक्ष ( करीब 4 केस दर्ज क्रिमिनल ), अविनाश जाजपुर फर्जी आइसना के इंदौर संभाग के महासचिव, 
🔷 फर्जी आइसना के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं अवधेश भार्गव ( करीब 10 केस दर्ज क्रिमिनल 100 से ज्यादा क्रिमिनल कांड, कई अपराधिक प्रकरण में माननीय न्यायालय, हाई कोर्ट में विचाराधीन एवं जांच एजेंसियों में विवेचना में )

इंदौर। कलेक्टर मनीष सिंह ने शासकीय अधिकारियों को भी फर्जी पत्रकारों से दूरी बनाए रखने के दिए निर्देश, कलेक्टर मनीष सिंह ने जिलेवासियों से अपील की है की वसूली के इरादे से आने वाले फर्जी पत्रकारों को करें पुलिस के सुपूर्द

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20 अक्तूबर 2021। इंदौर में जिला प्रशासन द्वारा पत्रकारिता की आड़ में ब्लैकमेलिंग का गौरखधंधा चलाने वाले गिरोह पर प्रहार शुरू कर दिया गया है। कलेक्टर मनीष सिंह ने जबरन वसूली की कई शिकायतों पर फर्जी पत्रकार देवेंद्र मराठा के खिलाफ कड़ी कारवाई करते हुए उसे रासुका के तहत 6 महीने के लिए निरुद्ध कर दिया है।

देवेंद्र मराठा को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम 1980 की धारा 3 की उपधारा 2 के तहत तथा गृह विभाग के आदेश दिनांक 17/09/2021 के तहत तथा जिला दंडाधिकारी को प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए 6 माह के लिए सेंट्रल जेल इंदौर में निरुद्ध करने के लिए आदेश जारी कर दिए गए है।

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देवेंद्र पिता रमेशचन्द्र मराठा निवासी अयोध्या नगरी,नंदा नगर को शिकायत के आधार पर लसुडिया पुलिस ने गिरफ़्तार किया था। देवेंद्र मराठा के ख़िलाफ़ ढाबा, होटल, कालोनाइज़र, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और ज़िम संचालकों ने सांध्य दैनिक अख़बार में खबर छापने के नाम पर जबरिया वसूली की शिकायत दर्ज करवाई थी। देवेंद्र मराठा ने कई खबरों के आधार पर लोगों को ब्लैकमेल भी किया गया।

कलेक्टर मनीष सिंह ने इस कार्रवाई के साथ पत्रकारिता की आड़ में पनप रहे संगठित अपराध पर नियंत्रण करने के लिए जिलेवासियों का आवाह्न करते हुए कहा है की यदि कोई भी व्यक्ति पत्रकारिता की आड़ में वसूली का प्रयास करता है तो वे उसे बिना किसी भय के पुलिस के सुपूर्द करें। कलेक्टर श्री मनीष सिंह ने शासकीय विभाग के सभी अधिकारियों को भी निर्देशित किया है कि फर्जी पत्रकारों से दूरी बनाकर रखें।

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2021

भारतीय प्रेस परिषद : एक संक्षिप्त विवरण ।

 

भारतीय प्रेस परिषद : एक संक्षिप्त विवरण ।



भारतीय प्रेस परिषद : एक संक्षिप्त विवरण ।


भारतीय प्रेस परिषद (Press Council of India ; PCI) एक संविघिक स्वायत्तशासी संगठन है जो प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा करने व उसे बनाए रखने, जन अभिरूचि का उच्च मानक सुनिश्चित करने से और नागरिकों के अघिकारों व दायित्वों के प्रति उचित भावना उत्पन्न करने का दायित्व निबाहता है। सर्वप्रथम इसकी स्थापना ४ जुलाई सन् १९६६ को हुई थी।


अध्यक्ष परिषद का प्रमुख होता है जिसे राज्यसभा के सभापति, लोकसभा अघ्यक्ष और प्रेस परिषद के सदस्यों में चुना गया एक व्यक्ति मिलकर नामजद करते हैं। परिषद के अघिकांश सदस्य पत्रकार बिरादरी से होते हैं लेकिन इनमें से तीन सदस्य विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, बार कांउसिल आफ इंडिया और साहित्य अकादमी से जुड़े होते हैं तथा पांच सदस्य राज्यसभा व लोकसभा से नामजद किए जाते हैं - राज्य सभा से दो और लोकसभा से तीन।


प्रेस परिषद, प्रेस से प्राप्त या प्रेस के विरूद्ध प्राप्त शिकायतों पर विचार करती है। परिषद को सरकार सहित किसी समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को चेतावनी दे सकती है या भर्त्सना कर सकती है या निंदा कर सकती है या किसी सम्पादक या पत्रकार के आचरण को गलत ठहरा सकती है। परिषद के निर्णय को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।


काफी मात्रा में सरकार से घन प्राप्त करने के बावजूद इस परिषद को काम करने की पूरी स्वतंत्रता है तथा इसके संविघिक दायित्वों के निर्वहन पर सरकार का किसी भी प्रकार का नियंत्रण नहीं है।


इतिहास 

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सन् १९५४ में प्रथम प्रेस आयोग ने प्रेस परिषद् की स्थापना की अनुशंशा की।

पहली बार ४ जुलाई सन् १९६६ को स्थापित

सन् ०१ जनवरी १९७६ को आन्तरिक आपातकाल के समय भंग

सन् १९७८ में नया प्रेस परिषद अधिनियम लागू

सन् १९७९ में नए सिरे से स्थापित

प्रेस परिषद् अधिनियम, १९७८ संपादित करें


प्रेस परिषद् की शक्तियाँ निम्नानुसार अधिनियम की धारा 14 और 15 में दी गई हैं।


परिषद् की निधि

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अधिनियम में दिया गया है कि परि­षद, अधिनियम में अंतर्गत अपने कार्य करने के उद्देश्य से, पंजीकृत समाचारत्रों और समाचार एजेंसियों से निर्दि­ट दरों पर उद्ग्रहण शुल्क ले सकती है। इसके अतिरिक्त, केन्द्रीय सरकार, द्वारा परिषद् को अपने कार्य करने के लिये, इसे धन, जैसाकि केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे, देने का व्यादेश दिया गया है।


परिषद् की शक्तियाँ

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परिनिंदा करने की शक्ति

14.1 जहाँ परिषद् को, उससे किए गए परिवाद के प्राप्त होने पर या अन्यथा, यह विश्वास करने का कारण हो कि किसी समाचारपत्र या सामाचार एजेंसी ने पत्रकारिक सदाचार या लोक-रूचि के स्तर का अतिवर्तन किया है या किसी सम्पादक या श्रमजीवी पत्रकार ने कोई वृत्तिक अवचार किया है, वहां परिषद् सम्बद्ध समाचारत्र या समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात उस रीति से जाँच कर सकेगी जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गये विनियमों द्वारा उपबन्धित हो और यदि उसका समाधान हो जाता है कि ऐसा करना आवश्यक है तो वह ऐसे कारणों से जो लेखवद्ध किये जायेंगे, यथास्थिति उस समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार को चेतावनी दे सकेगी, उसकी भर्त्सना कर सकेगी या उसकी परिनिंदा कर सकेगी या उस संपादक या पत्रकार के आचरण का अनुमोदन कर सकेगी, परंतु यदि अध्यक्ष की राम में जाँच करने के लिए कोई पर्याप्त आधार नहीं है तो परिषद् किसी परिवाद का संज्ञान नहीं कर सकेगी।


14.2 यदि परिषद् की यह राय है कि लोकहित् में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन है तो वह किसी समाचारपत्र से यह अपेक्षा कर सकेगी कि वह समाचारपत्र या समाचार एजेंसी, संपादक या उसमें कार्य करने वाले पत्रकार के विरूद्ध इस धारा के अधीन किसी जाँच से संबंधित किन्हीं विशि­टयों को, जिनके अंतर्गत उस समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, सम्पादक या पत्रकार का नाम भी है उसमें ऐसी नीति से जैसा परिषद् ठीक समझे प्रकाशित करे।


14.3 उपधारा 1, की किसी भी बात से यह नहीं समझा जायेगा कि वह परिषद् को किसी ऐसे मामले में जाँच करने की शक्ति प्रदान करती है जिसके बारे में कोई कार्रवाई किसी न्यायालय में लम्बित हो।


14.4 यथास्थिति उपधारा 1, या उपधारा 2, के अधीन परिषद् का विनिश्चय अंतिम होगा और उसे किसी भी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जायेगा।


परिषद् की साधारण शक्तियाँ

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14.5 इस अधिनियम के अधीन अपने कृत्यों के पालन या कोई जाँच करने के प्रयोजन के लिए परिषद् को निम्नलिखित बातों के बारे में संपूर्ण भारत में वे ही शक्तियाँ होंगी जो वाद का विचारण करते समय


1908 का 5, सिविल न्यायालय में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अधीन निहित हैं, अर्थात-


क, व्यक्तियों को समन करना और हाजिर कराना तथा उनकी शपथ पर परीक्षा करना,


ख, दस्तावेजों का प्रकटीकरण और उनका निरीक्षण,


ग, साक्ष्य का शपथ कर लिया जाना,


घ, किसी न्यायालय का कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रतिलिपियों की अध्यपेक्षा करना,


ड़, साक्षियों का दस्तावेज़ की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना,


च, कोई अन्य विषय जो विहित जाए।


2, उपधारा 1, की कोई बात किसी समाचारपत्र, समाचार एजेंसी, संपादक या पत्रकार को उस समाचारपत्र द्वारा प्रकाशित या उस समाचार एजेंसी, संपादक या पत्रकार द्वारा प्राप्त रिपोर्ट किये गये किसी समाचार या सूचना का स्रोत प्रकट करने के लिए विवश करने वाली नहीं समझी जायेगी।


1860 का 45, 3, परिषद् द्वारा की गयी प्रत्येक जाँच भारतीय दंड संहिता की धारा 193 और 228 के अर्थ में न्यायिक कार्यवाही समझी जायेगी।


4, यदि परिषद् अपने उद्देश्यों को क्रियान्वित करने के प्रयोजन के लिए या अधिानियम के अधीन अपने कृत्यों का पालन करने के लिए आवश्यक समझती है तो वह अपने किसी विनिश्चय में या रिपोर्ट में किसी प्राधिकरण के, जिसके अन्तर्गत सरकार भी है, आचरण के संबंध में ऐसा मत प्रकट कर सकेगी जो वह ठीक समझे। शिक्षाविदों की विशि­ट मंडली द्वारा संवारा गया है। उच्चतम न्यायालय के वर्तमान न्यायाधीश न्यायामूर्ति श्री जे. आर. मधोलकर, पहले अध्यक्ष थे जिन्होंने 16 नवम्बर 1966 से 1 मार्च 1968 तक परिषद् की अध्यक्षता की। इसके पश्चात न्यायामूर्ति श्री एन. राजगोपाला अय्यनगर 4 मई 1968 से 1 जनवरी 1976 तक, न्यायामूर्ति श्री एन. एन. ग्रोवर 3 अप्रैल 1979 से 9 अक्टूबर 1985 तक, न्यायामूर्ति श्री एन. एन. सेन 10 अक्टूबर 1985 से 18 जनवरी 1989 तक और न्यायामूर्ति श्री आर. एस. सरकारिया 19 जनवरी 1989 से 24 जुलाई 1995 तक और श्री पी. बी. सार्वेत 24 जुलाई 1995 से अब तक परिषद् के अध्यक्ष रहे हैं। ये उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश थे। इन सभी ने परिषद् के दर्शन और कार्यों में गहन वचनवद्धता के साथ, परिषद् का मार्गदर्शन किया। परिषद् इनसे निर्देश पाकर, इनके ज्ञान और बुद्धि से अत्यधिक लाभान्वित हुई।


परिषद् की कार्यप्रणाली

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परिषद् मूलतः अपनी जाँच समितियों के माध्यम से अपना कार्य करती है, तथा पत्रकारिता नियमों के उल्लंघन के लिए प्रेस के विरूद्ध अथवा प्राधिकारियों द्वारा प्रेस की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप के लिए ब्रेक्स से प्राप्त शिकायतों पर निर्णय देती है। परिषद् में शिकायत दर्ज करने की नियत प्रक्रिया है। एक शिकायतकर्ता के लिये अनिवार्य है कि वह प्रतिवादी समाचारपत्र के संपादक को लिखकर उनका ध्यान प्रथमतः पत्रकारिता नीति के उल्लघंन अथवा लोकरूचि के विरूद्ध अपराध की ओर आकृ­ट करे। शिकायत किये गये मामले की परिषद् को कतरन भेजने के अतिरिक्त शिकायतकर्ता के लिये यह घो­ाणा करना आवश्यक है कि उन्होंने अपनी संपूर्ण जानकारी तथा विश्वास के अनुसार परिषद् के समक्ष संपूर्ण तथ्य प्रस्तुत कर दिये हैं तथा शिकायत में कथित किसी वि­ाय में किसी न्यायालय में कोई मामला लंबित नहीं है और वह कि यदि परिषद् के सम्मुख जाँच लंबित होने के दौरान शिकायत में कथित कोई मामला न्यायालय की किसी कार्यवाही का वि­ाय बन जाता है तो वे तत्काल इसकी सूचना परिषद् को देंगे। इस घो­ाणा का कारण यह है कि अधिनियम की धारा 14, 3, को देखते हुए, परिषद् ऐसे किसी मामले में कार्यवाही नहीं कर सकती जोकि न्यायाधीन हो।


यदि अध्यक्ष महोदय को ऐसा लगता है कि जाँच के पर्याप्त आधार नहीं है, तो शिकायत खारिज कर, परिषद् को इसकी रिपोर्ट कर सकते हैं, अन्यथा समाचारपत्र के संपादक अथवा सम्बद्ध पत्रकार से कारण बताने के लिए कहा जाता है कि उनके विरूद्ध कार्यवाही न की जाये। संपादक अथवा पत्रकार से लिखित वक्तव्य तथा अन्य सम्बद्ध सामग्री प्राप्त होने पर, परिषद् का सचिवालय, जाँच समिति के सम्मुख मामला रखता है। जाँच समिति विस्तार से शिकायत की जाँच और परीक्षण करती है। यदि आवशक हो, तो यह दोनों पक्षों से अन्य विवरण अथवा दस्तावेजों की माँग करती है। पार्टियों को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने अथवा कानूनी पेशेवर सहित अपने प्राधिकृत प्रतिनिधियों के माध्यम से जाँच समिति के सम्मुख साक्ष्य देने का अवसर दिया जाता है। उपलब्ध तथ्यों और जाँच समिति के सम्मुख दये गये शपथपत्रों अथवा मौखिक साक्ष्य के आधार पर समिति अपनी उपलब्धियाँ और सिफारिशें तैयार करती है और परिषद् के सम्मुख रखती है जोकि उन्हें स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकती है। जहाँ परिषद् संतु­ट होती है कि एक समाचार पत्र अथवा समाचार एजेंसी ने पत्रकरिता नीति के स्तरों अथवा जनरूचि का उल्लंघन किया है अथवा एक संपादक अथवा श्रमजीवी पत्रकार ने व्यावसायिक कदाचार किया है, तो परिषद् जैसी स्थिति हो, समाचापत्र, समाचार एजेंसी, संपादक अथवा पत्रकार की परिनिन्दा, भर्त्सना कर सकती है अथवा उन्हें चेतावनी दे सकती है अथवा उनके आचरण का अनुमोदन कर सकती है। प्राधिकारियों के विरूद्ध प्रेस द्वारा दर्ज शिकायतों में, परिषद् को सरकार सहित किसी प्राधिकारी के आचरण के सबंध में ऐसी टिप्पणियां, जैसी वह उचित समझे, करने का अधिकार है। परिषद् के निर्णय अंतिम होते है और किसी विधि न्यायालय में उनपर आपत्ति नहीं की जा सकती। अतः इस प्रकार परिषद् को अत्यधिक नैतिक प्राधिकार है। यद्यपि इसके पास कानूनी रूप से देने के लिये दंडात्मक अधिकार नहीं है।


परिषद् द्वारा तैयार किये गये जाँच विनियम, अध्यक्ष महोदय को प्रेस परिषद् अधिनियम की परिधि में आने वाले किसी मामले के सबंध में मूल कार्यवाही करने अथवा किसी पार्टी को नोटिस जारी करने का अधिकार देते है। सामान्य जाँच के लिये शिकायतकर्ता द्वारा परिषद् के सम्मुख एक शिकायत दर्ज करनी होती है, इसके अलावा मूल कार्यवाही के लिए काफी हद तक वही प्रक्रिया होती है जैसाकि सामान्य जाँच में होती है। अपने कार्य करने के लिये अथवा अधिनियम के अंतर्गत जाँच करने के लिये, परिषद् निम्नलिखित मामलों के सबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के अंतर्गत एक मुकदमें की छानबीन के लिये सिविल न्यायालय में निहित कुछ अधिकारों का इस्तेमाल करती है


(क) लोगों को सम्मन करने और उपस्थिति हेतु दबाव डालने तथा शपथ देकर उनका परीक्षण करने हेतु।


(ख) दस्तावेजों की खोज और निरीक्षण की आवश्यकता हेतु।


(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य की प्राप्ति हेतु।


(घ) किसी न्यायालय अथवा कार्यालय से किसी सरकारी रिकार्ड अथवा इसकी प्रतियों की मांग हेतु।


(ड.) गवाहों अथवा दस्तावेजों के परीक्षण हेतु कमीशन जारी करना और


(च) कोई अन्य मामला, जैसकि निर्दि­ट किया जाये।


परिषद् अपना कार्य करने के लिये पार्टियों से सहयोग की आशा करती है। कम से कम दो मामलों में, जहाँ परिषद् ने गौर किया कि पार्टियाँ (पक्ष) एकदम असहयोगी अथवा कठोर थीं, वहाँ परिषद् ने अत्याधिक संयम एवं अनिच्छा से, अपने समक्ष उपस्थित होने और अथवा रिकार्ड आदि देने हेतु उन्हें विवश करने के अधिनियम की धारा 15 के अंतर्गत अपने प्राधिकार का इस्तेमाल किया। चण्डीगढ. के कुछ पत्रकारों की मुख्यमंत्री और हरियाणा सरकार के विरूद्ध शिकायत में, परिषद् द्वारा भेजे गये नोटिस का जवाब देने में प्राधिकारियों द्वारा अस रहने पर, उन्हें प्राधिकारियों को परिषद् के बल प्रयोग संबंधी अधिकारों के इस्तेमाल के बारे में, पहले परिषद् को चेतावनी देनी पडी.। इसी प्रकार बी. जी. वर्गीय के दी हिन्दुस्तान टाइम्स के विरूद्ध प्रसिद्ध मामलें में, बिरलाज को श्री वर्गीय और श्री के. के. बिरला के बीच हुआ पूर्ण पत्राचार प्रदान करने का निर्देश दिया गया।


एक समाचारपत्र, जिसे परिषद् द्वारा तीन बार परिनिंदित किया गया था, के मामले में कुछ अवधि हेतु डाक की रियायती दरों अथवा अखबारी कागज के वितरण, विज्ञापनों, मान्यता के रूप में कुछ सुविधाएं और रियायतें न देने पर सम्बद्ध प्राधिकारियों से सिफारिश करने का परिषद् को अधिकार दिये जाने के लिए, परिषद् ने 1980 में अधिनियम में संशोधन का प्रस्ताव किया था।


प्राधिकारियों की ओर से परिषद् की सिफारिसों के स्वीकृति की अनिवार्य होने की मांग की गई। इसके अतिरिक्त परिषद् का विचार था कि, समाचारपत्रों के मामलों के समान प्रेस परिषद् अधिनियम 1978 की धारा 15 (4) के अंतर्गत, सरकार सहित किसी प्राधिकरण के आचरण का सम्मान करते हुए अपने किन्हीं निर्णयों अथवा रिपोर्टो में, ऐसी टिप्पणियां, जैसी वह उचित समझे, करने के परिषद् के अधिकार में ऐसे प्राधिकारियों को चेतावनी देने, उनकी भर्त्सना करने अथवा उन्हें परिनिंदित करने के अधिकार भी शामिल होना चाहिए और यह कि, इस संबंध में परिषद् की टिप्पण्यों को संसद के दोनों सदनों और अथवा सम्बद्ध राज्य के विधान के सम्मुख रखा जाना चाहिए। वर्­ष 1987 में, परिषद् ने मामले पर पुनर्विचार किया और विस्तृत विचार-विमर्श के पश्चात दंडात्मक अधिकार हेतु प्रस्ताव को वापिस लेने का निर्णय किया क्योंकि इस संबंध में पुनर्विचार किया गया कि वर्तमान परिस्थितियों में प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के लिये प्राधिकारियों द्वारा इन अधिकारों का दुरूपयोग किया जा सकता था।


तभी से, बार-बार, सुझाव सन्दर्भ परिषद् को दिये गये हैं कि चूककर्ता समाचारपत्रों/पत्रकारों को दंड देने के लिए परिषद् के पास दंडात्मक अधिकार होने चाहिए। इसके जवाब में परिषद् ने लगातार यही विचार किया है कि अधिनियम की विद्यमान योजना के अंतर्गत इसे दिये गये नैतिक अधिकार पर्याप्त हैं। अक्टूबर 1992 में नई दिल्ली में प्रेस परि­ादों के अंतर्रा­ट्रीय सम्मेलन में अपने उद्घाटन भा­षण में सूचना और प्रसारण केन्द्रीय मंत्री द्वारा यह सुझाव दोहराया गया, परंतु परिषद् नें निम्निलिखित कारणों से इसे सर्व सम्मति से अस्वीकार कर दिया -


यदि परिषद् को दंड देने/जुर्माना लगाने का अधिकार दे दिया जाता तो यह दंड देने के अधिकार के समान होता जोकि केवल तभी लागू होता है जब प्रेस द्वारा सरकार तथा इसके प्राधिकारियों के विरूद्ध शिकायतें की जाती हैं। सार्थक दंड देने का अधिकार कई मामलों को उठाता है जिनमें क, प्रमाण का दायित्व, ख, प्रमाण का स्तर, ग, कानूनी प्रतिनिधित्व का अधिकार और लागत और घ, समीक्षा और अथवा अपील उपलब्ध होगी अथवा नहीं, शामिल हैं। इन मामलों में से सभी अथवा किसी एक का प्रभाव मूल आधार के विरोध में हो सकता है कि प्रेस परि­ादें शिकायतों की सुनवाई के लिये लोकतांत्रिक, प्रभावी और सस्ती सुविधा प्रदान करती हैं और यह कि परिणामी अनिवार्यता यह होगी कि इसके परिणामस्वरूप प्रेस परि­ादें औपचारिकता, लागत और पहुँच की जानी-मानी समस्याओं और न्यायिक अधिकार का प्रयोग करने वाले न्यायालय बन जायेंगी और समान रूप से विलंब होगा जिससे प्रेस परिषद् का मूल उद्देश्य विफल हो जायेगा।


दिसंबर 1992 में, परिषद् को केन्द्रीय सरकार से एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें इस वि­ाय पर परिषद् के विचार माँगे गये कि क्या यह सुनिश्चत करने के लिए कि, सांप्रदायिक लेखों के संबंध में मार्गनिर्देशों के उल्लंघन हेतु प्रेस परिषद् द्वारा परिनिंदित समाचारपत्रों/पत्रिकाओं को सरकार से मिलने वाले प्रोत्साहन जैसे विज्ञापन आदि से वंचित रखा जा सकता है, कोई प्रक्रिया निर्दि­ट की जा सकती है और क्या प्रेस परिषद् यह सुझाव देने की स्थिति में होगी कि जब यह एक समाचारपत्र/पत्रिका को मार्गनिर्देशों के उल्लंघन का दो­षी ठहराती है तब क्या कार्यवाही की जानी चाहिए। परिषद् ने जून 93 की अपनी बैठक में, परिषद् को दंडात्मक अधिकार दिये जाने के विरूद्ध विगत समय में इसके द्वारा लिये गये स्टैंड के प्रकाश में मामले पर विचार किया। मामले पर गहराई से विचार करने पर, परिषद् ने अनुभव किया कि इस समय परिषद् द्वारा जिस नैतिक अधिकार का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह काफी प्रभावी है और प्रेस को आत्म नियमन का मार्ग दिखाने में दंडात्मक अधिकारों की आवश्यकता नहीं है। हालांकि परिषद् ने निर्णय किया कि यदि एक समाचारपत्र तीन वर्­षों में किसी प्रकार के अनैतिक लेखन के लिये दो बार परिनिंदित किया जाता है, तब ऐसे निर्णयों की प्रतियाँ भारत सरकार के मंत्रिमंडल सचिव और सम्बद्ध राज्य सरकार के मुख्य सचिव, को सूचनार्थ और ऐसी कार्यवाही, जैसाकि वे अपने विवेक और मामले की परिस्थितियों में उचित समझे, हेतु भेजी जानी चाहिए। परिषद् ने निर्णय किया कि तीन वर्­षों की अवधि को दूसरी बार परिनिंदा की तारीख से उल्टे गिनते हुए पूर्ववर्ती तीन वर्­षों के रूप में लिया जायेगा।


आचार संहिता संपादित

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प्रेस परिषद् अधिनियम, 1978 की धारा 13 2 ख्र द्वारा परिषद् को समाचार कर्मियों की संहायता तथा मार्गदर्शन हेतु उच्च व्ययवसायिक स्तरों के अनुरूप समाचारपत्रों; समाचारं एजेंसियों और पत्रकारों के लिये आचार संहिता बनाने का व्यादेश दिया गया है। ऐसी संहिता बनाना एक सक्रिय कार्य है जिसे समय और घटनाओं के साथ कदम से कदम मिलाना होगा।


निमार्ण संकेत करता है कि प्रेस परिषद् द्वारा मामलों के आधार पर अपने निर्णयों के जरिये संहिता तैयार की जाये। परिषद् द्वारा जनरूचि और पत्रकारिता नीति के उल्लंघन शीर्­ाक के अंतर्गत भारतीय विधि संस्थान के साथ मिलकर पहले वर्­ा 1984 में अपने निर्णयों / मार्गनिर्देशों के जरिये व्यापक सिद्धातों का संग्रह तैयार किया गया था। सिद्धांतों का यह संकलन परिषद् के निर्णयों अथवा अधिनिर्णयों अथवा इसके अथवा इसके द्वारा अथवा इसके अध्यक्ष द्वारा जारी मार्गनिर्देशों से चुना गया है। वर्­ा 1986 में, सरकार और इसके प्राधिकारियों के विरूद्ध शिकायतों अथवा मामलों, जोकि दूरगाती और महत्वपूर्ण प्रकृति के थे और जिसमें सरकार सहित किसी प्राधिकारी के आचरण का सम्मान करते हुए टिप्पणियाँ शामिल थीं, में निर्णयों और सिद्धांतों से सम्बद्ध प्रेस की स्वतंत्रता का उल्लंघन शीर्­षक के अंतर्गत संकलन का दूसरा भाग प्रकाशित किया गया।


वर्­ष 1986 से संहिता निर्माण की त्वरित प्रकिया सहित शिकायतों की संस्थापना और प्रेस परिषद् द्वारा उनके निपटान में लगातार वृद्धि होती रही है। 1992 में परिषद् ने पत्रकारिता नीति निर्देशिका प्रस्तुत की जिसमें परिषद् द्वारा जारी मार्गनिर्देशों और निर्णयों से छाँटकर लिये गये पत्रकारिता नीति सिद्धांत हैं। चूँकि तब से परिषद् द्वारा प्रेस के अधिकारों और दायित्वों से सम्बद्ध कई अत्यधिक महत्वपूर्ण निर्णय दिये गये हैं, मार्गनिर्देशिका का 162 पृ­ठों का विस्तृत और व्यापक दूसरा संस्करण जारी किया जा चुका है। इसमें निजता के अधिकार की संकल्पना भी दी गई है और इस संबंध में तथा मागदिर्शन हेतु उच्च व्यावसायिक स्तरो के अनुरूप समाचार पत्रोंकिये जाने वाले मार्गनिर्देश भी विनिर्दि­ट किये गये है। प्रेस, सार्वजनिक कर्मचारियों और लोकप्रिय व्यक्तियों के मार्गदर्शन हेतु इसके कुछ पहलुओं में मानहानि कानून का भी सहयोग लिया गया है। परिषद् ने नगरपालिका समिति के सार्वजनिक पदाधिकारियों की कथित मानहानि के संबंध में महत्वपूर्ण अधिनिर्णय दिया कि प्रेस अथवा मीडिया के विरूद्ध नुकसान हेतु कार्यवाही का उपचार, सरकारी पदाधिकारियों को उनकी सरकारी ड्यूटी के निर्वाह से सम्बद्ध उनके कार्यों और आचरण के संबंध में साधारणतया उपलब्ध नहीं है, चाहे प्रकाशन ऐसे तथ्यों और वक्तव्यों पर आधारित हो जोकि सत्य न हो, जब तक कि पदाधिकारी यह स्थापित न करे कि प्रकाशन, सत्य का आदर और परवाह न करते हुए, किया गया था। ऐसे मामले में बचाव पक्ष् मीडिया अथवा प्रेस का सदस्य के लिये यह सिद्ध करना पर्याप्त होगा कि उन्होंने तथ्यों के समुचित सम्यापन के पश्चात कार्य किया, उनके लिये यह सिद्ध करना आवश्यक नहीं है कि उन्होंने जो कुछ लिखा है, वह सत्य है। परंतु जहाँ यह सिद्ध होता है कि प्रकाशन दुर्भावना अथवा व्यक्त वैर से प्रवृत्त और झूठा है, वहाँ बचाव पक्ष के लिये कोई बचाव नहीं होगा और नुकसान हेतु उत्तरदायी होगा। हालाँकि एक सार्वजनिक पदाधिकारी कोउन मामलों में जोकि उनकी ड्यूटी के निर्वाह से सम्बंद्ध न हों, वही सुरक्षा मिलती है जैसाकि किसी अन्य नागरिक को मिलती है। हालाँकि न्यायापालिका, संसद और राज्य विधानमंडल इस नियम का अपवाद हैं क्योंकि पूर्ववर्ती इसकी अवमानमा हेतु दंड के अधिकार से सुरक्षित है और उत्तरवर्ती संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 के अंतर्गत विशे­ााधिकारों से सुरक्षित है। परिषद् ने आगे दिया है कि इसका अर्थ यह नहीं है कि शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 अथवा कोई समान अधिनियमन अथवा उपबंध जिसे कानूनी शक्ति प्राप्त हो, प्रेस अथवा मीडिया पर नियंत्रण नहीं रख सकते। यह भी दिया गया है कि ऐसा कोई कानून नहीं है जोकि प्रेस/मीडिया पर पूर्व नियंत्रण रखने अथवा वर्जित रखने का राज्य अथवा इसके अधिकारियों को अधिकार देता हो।


सार्वजनिक पदाधिकारी के निजता के दावे के संबंध में, परिषद् ने निर्दि­ट किया है कि यदि सार्वजनिक पदाधिकारी की निजता और उनके निजी आचरण, आदतों व्यक्तिगत कार्यों और चरित्र की विशेषताओं, जिनका टकराव अथवा संबंध उनकी शासकीय ड्यूटी के समुचित निर्वाह से हो, के बारे में जानने के जानता के अधिकार के मध्य टकराव हो, तो पूर्ववर्ती को उत्तरवर्ती के सामने झुकना चाहिए। हालाँकि, व्यक्तिगत निजता के मामलों में, जोकि उनकी शासकीय ड्यटी के निर्वाह से सम्बद्ध नहीं है, सार्वजनिक पदाधिकारी को वही सुरक्षा मिलती है जोकि किसी अन्य नागरिक को मिलती है।


यह मार्गनिर्देशिका कुल मिलाकर विधि संबंधी, नैतिक और सदाचार संबंधी समस्याओं जोकि प्रतिदिन समाचारपत्रों के मालिकों, पत्रकारों संपादकों का विरोध करती है, के माध्यम से सुरक्षा और जिम्मेवारी का मार्ग सुझाती है। मार्गनिर्देशिका अकाट्य सिद्धांतों का संकलन नहीं है बल्कि इसमें व्यापक सामान्य सिद्धांत हैं, जोकि प्रत्येक मामले की परिस्थिति को देखते हुए समुचित विवेक और अनुकूलन के साथ लागू किये जाते है, तो वे व्यावसायिक ईमानदारी के मार्ग सहित पत्रकारों को उनके व्यवसाय के संचालन को आत्म-संयमित करने में उनकी सहायता करेंगे। किसी भी तरह ये थकाउ नहीं है न ही इनका अभिप्राय सख्ती है जोकि प्रेस के स्वच्छंद कार्य में बाधा डालती हो।

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गुरुवार, 30 सितंबर 2021

ठगों ने IFWJ पत्रकार संगठन हड़पने के लिए फिर की साजिश, जालसाज ठगों पर कई अपराधिक प्रकरण दर्ज, एक 420 के प्रकरण में फरार

  

ठगों ने IFWJ पत्रकार संगठन हड़पने के लिए फिर की साजिश, जालसाज ठगों पर कई अपराधिक प्रकरण दर्ज, एक 420 के प्रकरण में फरार

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लो पत्रकार साथियों जिसका डर था वही हो गया फिर फिर पत्रकारिता के नाम पर कलंक ने अपनी आदत अनुसार एक पत्रकार संगठन आईएफडब्ल्यूजे में फिर सेंध लगाने की साजिश कर दी, जिनको संगठन ने मान सम्मान और खाने को दिया उसी की थाली में छेद करके जिनकी औकात नहीं उन्होंने संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राष्ट्रीय महासचिव को ही फर्जी मीटिंग बुलाकर हटा दिया, पहले भी इन जालसाजों ने जिस जिस संगठन में रहे सभी का सत्यानाश कर चुके हैं, अब यह खबर आ रही है दिल्ली से आईएफडब्ल्यूजे के कार्यालय से संगठन के राष्ट्रीय महासचिव श्री परमानंद पांडे के द्वारा पत्र जारी कर यह जानकारी देश में फैले संगठन के समस्त सदस्य और पदाधिकारियों को अवगत करा रहे हैं। आखिर इनका साजिशकर्ता नटवरलाल कहां-कहां अपनी औकात दिखाएगा, आज उसकी औकात आईएफडब्ल्यूजे के संगठन दिखा दी । आप सभी को संबंधित जानकारी से अवगत होकर ऐसे लोगों से सावधान हो जाना चाहिए।

श्री परमानंद पांडेय सचिव जनरल : आईएफडब्ल्यूजे IFWJ द्वारा जारी नोटिस एवं जानकारी

प्रिय मित्रों, 
हम आपको सूचित करना चाहते हैं कि चार या पांच निराश जोकर, जो दूर-दूर तक मीडियाकर्मियों की समस्याओं से संबंधित नहीं रहे हैं और न ही कभी मीडिया कर्मचारियों के संघर्ष में भाग लिया है, नोएडा के एक क्लब में इकट्ठे हुए और आईएफडब्ल्यूजे को नुकसान पहुंचाने और बदनाम करने का फैसला किया। लेकिन वे बुरी तरह विफल रहे क्योंकि किसी ने उन्हें कोई महत्व नहीं दिया। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इन जोकरों का महान संगठन-आईएफडब्ल्यूजे- से कोई संबंध नहीं है, जिसका गौरवशाली इतिहास और पत्रकारों के लिए संघर्ष की गाथा है। ये कॉमेडियन विज्ञापनों को बटोरने, चापलूसी करने और अधिकारियों को चकमा देने के लिए जाने जाते हैं, छोटे-छोटे प्रॉपर्टी डीलर के रूप में काम करते हैं, लेकिन IFWJ के नाम को ढाल के रूप में इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं। क्लब की बैठक में एक सज्जन थे, जो कई आपराधिक मामलों में जेल गए थे, एक अन्य व्यक्ति जिसका सांप्रदायिकता के साथ अस्पष्ट संबंध है, एक सज्जन जिस पर पटियाला हाउस कोर्ट में दीवानी मुकदमा वापस लेने के लिए नकद और तरह की रिश्वत लेने का आरोप है। बैठक में पीएफआई का एक एजेंट भी मौजूद था। एक बार फिर, एक व्यक्ति था, जो अखबार के मालिकों का एजेंट था/है। सबसे हास्यास्पद बात यह है कि जब इन भैंसों को अपना नाम देने के लिए कोई व्यक्ति नहीं मिला, तो उन्होंने के एम झा जैसे एक बहुत ही सस्ते व्यक्ति को अपना अध्यक्ष पाया, जो कुछ दिन पहले किसी अन्य संगठन में शामिल होने के लिए IFWJ छोड़ दिया था। वह बैठक में भी मौजूद नहीं थे। कोई नहीं जानता कि दूसरे संगठन के संबंध में श्री झा का क्या रुख होगा? उन्होंने श्री मनोज मिश्रा पर महासचिव का पद थोपने का प्रयास किया, जिन्होंने अनुकरणीय तत्परता से और अपनी नियुक्ति के एक घंटे के भीतर खुद को अलग कर लिया। यह उनके व्यक्तित्व में बुनियादी ईमानदारी को दर्शाता है कि सोशल मीडिया पर इस खबर के फैलने के एक घंटे में उन्होंने सभी समूहों में प्रसारित एक और पोस्ट लिखा कि उनका असंतुष्टों के झांसे से कोई लेना-देना नहीं है। साथियों, ये बैंडिकूट राज्य इकाइयों को अपने कुकर्मों के बारे में फोन करते रहे हैं, लेकिन उन्हें सभी राज्य इकाइयों से फटकार मिल रही है। इन जॉनीज़ ने IFWJ नेतृत्व के खिलाफ वित्तीय आरोप लगाकर अपना मतलब दिखाया, यह अच्छी तरह से जानते हुए कि पिछले छह वर्षों से संगठन कुछ पदाधिकारियों के व्यक्तिगत योगदान पर चल रहा है। भीषण संकट में भी उनमें से एक ने हेमंत तिवारी द्वारा दान किया गया फर्नीचर और कंप्यूटर अपने घर ले लिया था और उन्हें कभी वापस नहीं किया। दुर्भाग्य से, वह IFWJ के कोषाध्यक्ष थे, लेकिन उन्होंने अपनी आत्मा को पुराने धोखेबाज को बेच दिया, जो पूरे पत्रकार समुदाय से घृणा और तिरस्कार करता है। अब साफ है कि ये लोग उसी मास्टर ठग के हाथों में खेल रहे हैं। एकजुट रहो।बहुत जल्द हम उनके गंदे खेल का पर्दाफाश करेंगे। आपको धन्यवाद, सादर, 
परमानंद पांडेय 
सचिव जनरल: आईएफडब्ल्यूजे IFWJ

शनिवार, 25 सितंबर 2021

ब्लैकमेलर फ़र्जी पत्रकार अवधेश भार्गव की काली करतूतें, लड़की के साथ बलात्कार करने... पर पड़ी न्यायालय से सजा, फिर एक मुकदमा दर्ज

   

 ब्लैकमेलर फ़र्जी पत्रकार अवधेश भार्गव ( फर्जी आइसना ) की काली करतूतें, 


भोपाल / विनय जी. डेविड ( वरिष्ठ पत्रकार )

9893221036

भोपाल । हरामखोर ब्लैकमेलर फ़र्जी पत्रकार अवधेश भार्गव ने बैरागढ़ की एक लड़की के साथ बलात्कार करने... के जुल्म में के आरोप में न्यायालय ने सजा सुनाई फिर भी यह हरामखोर मान नहीं रहा है, स्टेट बैंक का लुटेरा थाना शाहजहानाबाद में दर्ज 1975 में मुकदमे के आधार पर भोपाल सेंट्रल जेल में 3 साल की जेल काटी।

दूसरी लड़की के साथ बागसेवनिया थाना क्षेत्र में- 9ए/282 साकेत नगर भोपाल देवेन्द्र पाटीदार, पीयुष तिवारी, विवेक पाठक एवं थामस फ्रांसिस लड़की की इज्जत बचाते हुए बलात्कार करने की कोशिश पर हाथ पैर तोड़ कर डंडों से सर फाड़ कर नाले में फेंक दिया था विनय डेविड पत्रकार ने हमीदिया अस्पताल ले जाकर 56 टांके लगवा कर हड्डी में प्लास्टर बनवा कर जान बचाई। 


ब्लैकमेलर फ़र्जी पत्रकार अवधेश भार्गव ( फर्जी आइसना ) की काली करतूतें

अशोका गार्डन थाना क्षेत्र में एक मूक लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार किया उसकी भी रिपोर्ट घूम रही है, जबलपुर सर्किट हाउस में एक महिला के साथ रंगे हाथ पकड़ा या थाना सिविल लाइन जबलपुर ने की थी कार्रवाई। एक महिला के साथ छतरपुर खुजराहो में 3 स्टार होटल में अय्याशी करते पत्रकारों ने पकड़ा महिलाओं की इज्जत को देखते हुए उनका खबर में खुलासा नहीं कर रहा हूं । इसकी तथाकथित गर्लफ्रेंड जो बैरागढ़ की है उसने फोन पर जानकारी में बताया कि अवधेश भार्गव ने बहुत हारामी किस्म का व्यक्ति है जिसने कई लड़कियों की जिंदगी बर्बाद कर दी। कल से हम बहुत सारे खुलासे मय प्रमाण के करेगें। 

खबर के साथ पोस्ट फोटो को संभाल कर रख लीजिए सेव करके जरूरत पड़ने पर काम आएगी।

सभी लड़कियों के बयानों के साथ खबरों का मजा कल से लीजिए, अभी एक महिला को और अपनी गिरफ्त में ले रखा है उसकी भी जानकारी हम देंगे उसके साथ मिलकर झूठे मुकदमे दर्ज कराने की साजिश रच रहा है उसकी संपत्ति लूटने की साजिश में लगा। जैसे कि था ना कोई पहचान तगत ईदगाह हिल्स में नावेद हमीद के मकान को हड़प लिया था फर्जी एग्रीमेंट बनाकर उस पर कोर्ट से भी स्टे ले लिया था थाने में जूते पड़ने के बाद उस मकान को पैर पर गिरकर नावेद हमीद को वापस किया। इसी तरह इस महिला के की परिवार की संपत्ति हड़पने के चक्कर में लगा है। दिल्ली में पायल सिबिलामा किसकी गर्लफ्रेंड के ऊपर 30 से ज्यादा मुकदमे लगे हैं इसके साथ मिलकर इस ने 30 से ज्यादा धोखाधड़ी के अपराधों को अंजाम दिलवाया यह इसकी गर्लफ्रेंड तिहाड़ जेल में है भार्गव के साथ मिलकर यह महिला ने स्टेट न्यूज़ के कार्यालय में बैठकर कई लोगों को ज्वेलर्स ट्रैवल्स एजेंसी और मोबाइल वालों को करोड़ों रुपए का चूना लगाया। 

बैंक घोटाला, बीमा घोटाला, फर्जी वेबसाइट घोटाला, पत्रकार संगठन आइसना का फर्जी अकाउंट खोल करके 18 लाख रुपए विजया बैंक लालघाटी एवं भोपाल कोऑपरेटिव बैंक में 5 लाख का घोटाला किया, इस घोटाले में जनसंपर्क के भी कुछ अधिकारी गिरफ्त में आ गए हैं इस मामले की लोकायुक्त पुलिस भोपाल जांच कर रही है, पूर्व जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम मिश्रा जी को भी गुमराह करके उसने करोड़ों रुपए के फर्जी वेबसाइट में विज्ञापन जारी करवा लिए हाई कोर्ट जबलपुर ने केस की जांच करने के आदेश जारी किए हैं आर्थिक अपराध भोपाल ने धारा 420 467 468 471 का मुकदमा पंजीकृत कर लिया है जल्द..

जारी रहेगा सच खबरों का पैनी धारदार रिपोटिंग..?

नटवरलाल के काले कारनामों के सारे काले चिट्टे...

यह सभी खबर पुलिस थाने में दर्ज f.i.r. न्यायालय में दर्ज मुकदमे के बयान, न्यायालय के फैसले, महिलाओं के बयान और शिकायतों पर आधारित है 100 % पुष्ट खबर है।

यह खबर नहीं लिखना चाहता था कि मुझे लिखनी पड़ रही है क्योंकि जब कोई सठिया जाए तो उसको उसकी औकात दिखा देना चाहिए। सच सामने तो आता ही है

शनिवार, 18 सितंबर 2021

आइसना" जिला इकाई सागर में श्री मिलन सिंह यादव जिला संयोजक नियुक्त

  

 

आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन"*
( आइसना ) मध्य प्रदेश, sagar


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भोपाल. देश और मध्यप्रदेश में पत्रकारों का सबसे बड़ा लगातार 39 वर्षों से पत्रकारों की सेवा में समर्पित एवं लोकप्रिय संगठन *"आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन"* (आइसना ) की सागर जिला और तहसील स्तर में इकाइयों का गठन किया जाना है। संगठन के विस्तार हेतु *श्री मिलन सिंह यादव* जिला संयोजक* नियुक्त किया है.

आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन"*
( आइसना ) मध्य प्रदेश, sagar

यह पहला संगठन है जो मध्यप्रदेश में दशकों से पत्रकारों के लिए मध्यप्रदेश सरकार से पत्रकारों के हितों में सदैव संघर्ष और नेतृत्व करता रहा है आज भी पत्रकारों के हितों में कई प्रकरण माननीय हाईकोर्ट न्यायालय में विचाराधीन है।

आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन"*
( आइसना ) मध्य प्रदेश, sagar

आज बीना में हुई संगठन की बैठक में आइसना के मध्य प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष विनय जी. डेविड ने सागर जिला संयोजक पद पर श्री मिलन सिंह यादव को नियुक्त किया और शुभकामनाएं दी. इस बैठक में संगठन के संगठन महासचिव प्रशांत वैश्य, वरिष्ठ पत्रकार संतोष दुबे, जितेंद्र सिंह चौहान, नंदकिशोर चौधरी, माधव से पप्पू यादव, सतीश अहिरवार, राकेश यादव, परिषद से नवनीत कॉलिंस भी उपस्थित रहे.

आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन"*
( आइसना ) मध्य प्रदेश, sagar

सागर जिले के पत्रकार साथी आइसना की सदस्यता प्राप्त करने हेतू आमन्त्रित हैं। सदस्यता हेतू योग्यता प्रमाणपत्र, प्रेस द्वारा जारी परिचय पत्र, दो रंगीन फोटो, सहित संपर्क कर सदस्यता ले सकते है।

आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन"*
( आइसना ) मध्य प्रदेश, sagar

जिले एवं तहसील में सदस्यता प्राप्त करने हेतु पत्रकार साथी सम्पर्क कर सकते है। "आइसना" पत्रकार संगठन के सभी पदाधिकारी गणों एवं सदस्य गणों ने ढेर सारी शुभकामनाएं दी है आप भी शुभकामनाएं प्रेषित कर सकते हैं


*श्री मिलन सिंह यादव सागर जिला संयोजक*

+919826557778

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जारी : 18/09/2021

*मध्यप्रदेश में साथी संगठन से जुड़ने और अधिक जानकारी के लिए सुबह 11:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक संपर्क करें*

*विनय जी. डेविड*
प्रदेश अध्यक्ष
*"आल इंडिया स्माल न्यूज़ पेपर्स एसोसिएशन"*
( आइसना ) मध्य प्रदेश
+91 9893221036

*विनोद मिश्रा*
प्रदेश महासचिव (आइसना)
+918770448757

*प्रशांत वैश्य*
प्रदेश संगठन महासचिव (आइसना)
+917999057770

बुधवार, 16 जून 2021

अधिमान्य पत्रकार एन पी अग्रवाल के जनसंपर्क वाले बीमा पर इलाज अवधेश भार्गव ने करवाया, बीमा कंपनी से लाखों की धोखाधड़ी वकी, आँखों देखी ख़बर

 

 


अधिमान्य पत्रकार एन पी अग्रवाल के जनसंपर्क वाले बीमा पर इलाज अवधेश भार्गव ने करवाया, बीमा कंपनी से लाखों की धोखाधड़ी वकी, आँखों देखी ख़बर


*इस मामले में जांच एजेंसी जांच करें  एन पी अग्रवाल हॉस्पिटल में भर्ती हुआ था कि नहीं, खुल जाएगी पोल*

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( प्रमाणित खबरों का पिटारा )

*अवधेश भार्गव की धोखाधड़ी का शिकार हुआ अधिमान्य पत्रकार एन पी अग्रवाल, बीमा कंपनी से लाखों की धोखाधड़ी की*

*इलाज की फाइल विनय जी. डेविड के पास सुरक्षित हैं एन पी अग्रवाल ने डेविड को ही दी थी फाइल भुगतान करवाने के लिये अरेरा कॉलोनी ऑफिस पहुचाने* 

*पुलिस सही जांच नही करेगी तो मामला न्यायालय जायेगा*

*भोपाल. फर्जी पत्रकारों के नाम पर कलंक चिटरबाज अवधेश भार्गव आज से नहीं पिछले 30 वर्षो पत्रकारों का शोषण करने वाला और जालसाज है. पत्रकार भवन समिति से लेकर जहॉ भी यह रहा उसे बर्बाद करके रख दिया। भोपाल शहर के कई लोगों को और कई पत्रकारों पर जालसाजी करके फर्जी प्रकरण में फसा दिया और अब इसी कड़ी में एक और शिकार हो गया।*

मामला रोचक और अपराध गंभीर है। पत्रकार स्वास्थ्य एवं दुर्घटना बीमा योजना जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रदेश मे काम कर रहे पत्रकारों की सुरक्षा के लिए कराया जाता है जनसम्पर्क विभाग ही इस बीमा योजना की प्रीमियम राशि का भुगतान भी करता है. यह सब होने के बाद बीमा कंपनी यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड पत्रकारों को अस्पताल में भर्ती होने पर कैशलेश इलाज की सुविधा प्रदान करते हैं। इस योजना का फायदा उठाकर कथित पत्रकार अवधेश भार्गव ने वर्षो पुराने पत्रकार साथी श्री नारायण प्रसाद अग्रवाल के बीमा योजना कार्ड पर अपना इलाज करवाकर बीमा कंपनी को लाखों का चूना लगा दिया। यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के मैनेजमेंट शाखा MD इंडिया हेल्थ इंश्योरेंस TPA प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को भी अवधेश भार्गव की शातिर चाल का आभास नहीं हो पाया।

अधिमान्य पत्रकार एन पी अग्रवाल के जनसंपर्क वाले बीमा पर इलाज अवधेश भार्गव ने करवाया, बीमा कंपनी से लाखों की धोखाधड़ी वकी, आँखों देखी ख़बर


सत्य घटना मार्च 2016 में अवधेश भार्गव जब स्टेट न्यूज़ भोपाल की लिफ्ट से फिसलकर गिर गये थे, हाथों की हड्डी के क्रेक हो गई थी टूट गई थी। इलाज के लिए भोपाल के सिटी हास्पीटल जोन 2 एमपी नगर में भर्ती हुए और अपना इलाज शुरू करवा दिया। मैं स्वयं विनय डेविड उस वक्त इसी हास्पीटल मै अपना इलाज करवा रहा था। हम एक ही पत्रकार संगठन में पदाधिकारी होने की वजह से वहां उपस्थित थे। अवधेश भार्गव ने पत्रकार एन पी अग्रवाल को कहा कि है वह झूठी बीमारी का बहाना बनाकर अस्पताल में भर्ती हो जाएं और अपना बीमा कार्ड ओर अन्य दस्तावेज दे दें।पत्रकार एन पी अग्रवाल खास दोस्त होने की वजह से अवधेश भार्गव को मना भी नहीं कर पा रहे थे क्योंकि सामने अवधेश भार्गव हाथों की टूटी हड्डी बिस्तर पर पड़ा था और अवधेश भार्गव के पास अपना इलाज करवाने के लिए भी रुपया नहीं था। 

मरता क्या नहीं करता पत्रकार एन पी अग्रवाल खास दोस्त अवधेश भार्गव के खातिर अग्रवाल अपना बीमा कार्ड और दस्तावेज लाकर हॉस्पिटल में भर्ती हो गए और अपने इलाज का इस्टीमेट बीमा कंपनी की शाखा को भिजवा दिया चूंकि अवधेश भार्गव पहले से बीमा कंपनी के मैनेजर जॉन को जानते थे इसलिए उनको फोन पर ही गुमराह कर अपने इलाज में लगने वाली रकम की अनुमति करवा ली। 

अवधेश भार्गव की षड्यंत्रकारी शातिर चालों से बीमा कंपनी ने भरोसे में इलाज करने की अनुमति दे दी। अनुमति मिलने के बाद एन पी अग्रवाल ने विनय डेविड से कहा भार्गव के चक्कर में कही लफड़ा नही हो जाये इस पर विनय डेविड ने कहा आपको ऐसा फर्जीबाड़ा नही करना चाहिये हम लोग संगठन की ओर से फंड इकठ्ठा कर लेते। परन्तु भार्गव से सांठगांठ पहले तय हो गई थी।

बीमा राशि की अनुमति मिलने के बाद ही अस्पताल से NP अग्रवाल नदारद हो गये ओर दो दिन तक अस्पताल में नजर नही आये। यहाँ अस्पताल में अवधेश भार्गव ने अपने हाथ की टूटी हड्डी का ऑपरेशन करवा लिया और अवधेश भार्गव को हॉस्पिटल के प्रबंधन ने बिल की रकम जमा करने हो कहा तो भार्गव ने बिल का भुगतान NP अग्रवाल बीमा राशि की रकम से करने को कहा बोला आपको रुपया चाहिये ये बीमा कम्पनी से रुपया इसलिये ही जारी करवाया है पत्रकारिता की धौस दिखने लगा, हॉस्पिटल का बिल अधिक हो रहा था वहाँ भी अवधेश भार्गव अपनी पत्रकारिता दिखाते हुए बाकी के ₹50000 भी जमा नहीं किए।

*बीमा कंपनी से लाखों की धोखाधड़ी की शिक़ायत*

अवधेश भार्गव और अधिमान्य पत्रकार एन पी अग्रवाल कर द्वारा बीमा कंपनी से लाखों की धोखाधड़ी की शिकायत पत्रकार विनय डेविड ने MP नगर थाना, पुलिस अधीक्षक महोदय, पुलिस महानिरीक्षक महोदय, पुलिस महानिदेशक महोदय एवं यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, कमिश्नर जनसंपर्क विभाग, प्रमुख सचिव जनसंपर्क विभाग को कर दी है देखना है है कि इस धोखाधड़ी में शामिल लोग कब जेल की सलाखों के पीछे पहुंचते हैं। पुलिस आरोपियों को जल्द गिरफ्तार नही करती तो पत्रकारिता को कलंकित करनेवाले और इसकी आड़ में फर्जीबाड़ा करने वालों के खिलाफ न्यायालय में मुकदमा लगाया जाएगा।

एक और मामले में एक भोपाल के हॉस्पिटल से फर्जी दस्तावेज जानकारी देकर सीएम सहायता से लिये लाखों रुपये जबकि बीमार कोई और बताया कुछ। वो भी करेंगे खुलासा। 

*दोस्तों यह खबर औऱ खुलासा आपको कैसा लगा आप कमेंट बॉक्स पर अपने कमैंट्स भेज सकते हैं और  सब्सक्राइब करने के लिए लाइक करें। इस ख़बर को शेयर करें पुनः प्रकाशित के करें हमें कोई आपत्ति नही ।

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