गुरुवार, 7 मार्च 2013

पत्रकारों की नेतागिरी की आड़ में दलाली का घिनौना षडय़ंत्र


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मध्यप्रदेश की पत्रकारिता बाजारवाद की गंदगी से सराबोर है। तीसरे दर्जे की राजनीति के षडयंत्रों से घिरी इस पत्रकारिता को दलालों के गिरोह ने फुटबॉल बनाकर रख दिया है। जो ईमानदार पत्रकार अपनी लेखनी की पूजा करते हैं और सामाजिक विद्रूपताओं को उजागर करते हैं वे दर दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। इसकी तुलना में वसूली का कारोबार करने वाले विज्ञापन के एजेंटों की पौ बारह है। यही कारण है कि अधिकतर पत्रकार या तो पीआरओ बनते जा रहे हैं या फिर विज्ञापन एजेंट। इसी तरह विज्ञापन एजेंटों ने पत्रकारों की कुर्सियां हथिया लीं हैं और अब तो वे भ्रष्ट अफसरों की कृपा से पत्रकारों के नेता तक बन गए हैं। नेताई पत्रकारों के फार्मूलौं के कारण सरकार जनता के खजाने से नेताई पत्रकारों के लिए तमाम सुविधाएं उपलब्ध करा रही है लेकिन पत्रकारों का शोषण करने वाले ये सत्ता के दलाल इन संसाधनों को पत्रकारों तक नहीं पहुंचने दे रहे हैं।
पत्रकारों की ये रसद बीच में ही गड़प कर जाने वाले इन सत्ता के दलालों को मध्यप्रदेश सरकार के जनसंपर्क विभाग के कुछ अफसरों ने अपना एजेंट बना रखा है। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारों की नीतियों को भ्रष्टाचार की गटर गंगा में बहाने वाले इन दलालों को पत्रकारों के एक स्वयंभू नेता ने अपनी सत्ता चमकाने के लिए पनाह दी थी। 
जनसंपर्क विभाग के भुगतानों की आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो से जांच कराई जाए तो नपुंसक राजनीति की पोल आसानी से खोली जा सकती है। पत्रकारों के नाम पर चलाई जा रही इस घटिया राजनीति को जनसंपर्क विभाग के अधिकारी आसानी से समाप्त कर सकते थे लेकिन कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने अपना उल्लू सीधा करने के लिए इन दलालों को भरपूर पनाह दी। अब यदि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अप्रैल में होने वाली पत्रकार पंचायत में इस दलाल के काले कारोबार पर सवाल उठेंगे इस दलाल का धंधा बंद हो सकता है। वास्तव में पत्रकारों का शोषण करने वाला ये दलाल पत्रकारिता छोडक़र सब करता है।
जब मुख्यमंत्री जी ने पत्रकार पंचायत की घोषणा की तो जनसंपर्क विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों और बाबुओं को भय सताने लगा कि कहीं उनकी पोल न खुल जाए। उन्होंने आनन फानन में इस दलाल के माध्यम से इसके नकली संगठन के कुछ पत्रकारों की बैठक बुलवाई। इन पत्रकारों की भोजन व्यवस्था भी इन्हीं भ्रष्ट अफसरों ने ही करवाई थी। इस बैठक में पत्रकारों की कथित कार्यसमिति के नाम से पत्रकार पंचायत का विरोध करने की रणनीति बनाई गई। कि बड़े समाचार पत्रों और चैनलों के पत्रकार तो पंचायत में आएंगे नहीं। जबकि सच ये है कि इसी गिरोह ने कुछ तथाकथित बड़े पत्रकारों को भयभीत किया गया कि वे पत्रकार पंचायत का विरोध करें।
यदि पंचायत होगी तो फिर बड़े पत्रकारों को दिए गए विज्ञापन और सत्कार के देयकों की पोल भी खुलेगी। इसके बाद पूरी दुनिया में पत्रकारों के भ्रष्टाचारों की कहानियां छपेंगी। बड़े कहे जाने वाले कुछ भ्रष्ट पत्रकारों ने जनसंपर्क विभाग से लाखों रुपयों के भुगतान प्राप्त किए हैं इसलिए वे भी धीरे धीरे सुर में सुर मिलाने के लिए मजबूर हो गए हैं। जनसंपर्क विभाग और सरकार के कुछ नेता भी भेडियों के इसी सुर में सुर मिला रहे हैं क्योंकि उन्हें भय है कि यदि जनसंपर्क के बजट में भ्रष्टाचार की कहानियां खुलेंगी तो उनकी भी राजनीति चौपट हो जाएगी। इसलिए वे भी मंत्रियों के सहयोग से मुख्यमंत्री जी की ईमानदार पहल का विरोध करने में लग गए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि मुख्यमंत्री जी अपनी ही सरकार के खिलाफ रची गई इस साजिश का शिकार होने से खुद को जरूर बचा लेंगे।

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