सोमवार, 5 नवंबर 2012

आल इंडिया न्‍यूज पेपर्स एसोसिएशन का संक्षिप्‍त परिचय


आल इंडिया न्‍यूज पेपर्स एसोसिएशन का संक्षिप्‍त परिचय

आल इण्डिया स्माल न्यूजपेपर्स की स्थापना सन 1982 मे की गई थी। लघु एवं मध्‍यम समाचार पत्रो एवं मध्यम समाचार पत्रो के मालिक, सम्पादक व पत्रकारों ने केन्द्र सरकार व राज्य सरकारों के द्वारा देश के लघु व मध्यम समाचार पञो पर किये जा रहे अत्याचार, उत्पीड़न व उपेक्षा से क्षुब्ध होकर आइसना संगठन की स्थापना कराकर एक केन्द्रीय समिति को गठित किया इसके बाद देश के सभी प्रदेशों और सभी प्रदेशों के अधिकाशं जिलों मे आइसना की समितियां गठित की। आप सब भली भांति इन तथ्यों से अवगत हैं कि यही लघु एवं मध्यम समाचार पत्र भारत सरकार व राज्य सरकार की ग्रामीण योजनाओं को सुदूर गांव मे जन-जन तक पहुचाने का कार्य करते हैं और गांधी जी के पंचायती राज सपने को साकार करने मे सतत प्रयासरत हैं फिर भी सरकारों द्वारा समाचार पत्रों को भारतीय संविधान मे प्रदक्त अधिकारों का हनन, स्‍वतंत्रता लेखनी पर रूकावट व समाचार संकलन के अधिकारों का हनन लगातार किया जा रहा है। आये दिन समाचार पत्रों के सम्पादकों व पत्रकारों की हत्या व मारपीट, अवमानना, अपहरण की घटनायें बराबर सरकार के नुमाइन्दों द्वारा अन्जाम दी जा रही हैं। इसी तरह से बडे-बडे उधोगपति भी अपने काले धन को सफेद धन मे परिर्वतित करने के लिए भारतीय समाचार पत्रें को खरीद कर उनका संचालन करवा रहे हैं और अपने समाचार पत्रों के पत्रकारों को भी बधुआ मजदूर की तरह उनका उपयोंग करते हुए उनकी स्वतंत्र् लेखनी निर्भीक पत्रकारिता को गिरवी रख लिया है, जिसके कारण यह पत्रकार निर्भीक स्वतंत्र् होकर किसी के काले कारनामों को उजागर नही कर पाते हैं क्योंकि इन पू‍जिपतियों ने अपने पत्रकारों की लेखनी पर अंकुश लगाने के लिए एक अपना संपादक मंडल बैठा रखा है जो उस पत्रकार के उसी समाचार को प्रकाशित होने देता है जिससे उसे आथिर्क लाभ हो। सरकार द्वारा लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों को मिलने वाले विज्ञापन बजट का दुरूपयोग किया जा रहा है। विज्ञापन बजट को सरकारी नुमाइन्दे अपने व्यक्तिगत स्‍वार्थ पूर्ति मे आहारित कर देते हैं जिसके कारण लघु एवं मध्यम समाचार पत्रों को विभागों से मिलने वाला विज्ञापन नगण्य हो गया है समाचार पञों के मालिक, सम्पादक, पत्रकार भुखमरी के कगार पर पहुच चुके हैं। उक्त समस्याओं के निराकरण मे आइसना हमेशा कार्यरत रहा है, धरना, प्रदार्न व रैली इसके प्रमुख उदाहरण हैं। आइसना ने सभी प्रदेशो के राज्य सरकारों व भारत सरकार के उत्पीड़न और भेदभावों के खिलाफ आवाज बुलन्द किया है। आज हम अपनी कमियों को उजागर करते हुए यह कहना चाहते हैं कि हममें से कुछ स्‍वार्थी साथियों ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए चन्द लोगों का साथ लेकर उनको गुमराह करके समाचार पत्रों के अलग अलग संगठन बनाकर हमारी एकता, एकजुटता व अखंडता को विखंडित कर दिया है जिसके कारण हम सक्त होते हुए भी आसक्त होकर रह गये हैं जिसका फायदा शासन व प्रशासन उठा रहा है क्योंकि सरकारी नुमाइन्दों को यह विवास हो गया है कि हम सभी एकजुट नही हो सकते हैं और सरकार व प्रशासन को बना व बिगाड़ नही सकते हैं। आज हम अपने आइसना संगठन पर गौरवान्वित हैं कि हमारे सदस्य व पदाधिकारी एकजुट होकर भारी संख्या मे संगठित हैं। हमारे सदस्य व पदाधिकारियों को कोई अन्य संगठन गुमराह नही कर सकता। हमारी एकजुटता विशाल शक्ति का परीक्षण भारत देश की स्वतंत्र्ता के इतिहास मे लिखा जा चुका है। हमारे लघु व मध्यम समाचार पत्रों के मालिक, सम्पादक व पत्रकारों ने भारत ऎसे विशाल देश को आजाद कराने मे अपने प्राणों को न्यौछावर किया है, अंग्रेजों के लाठी डंडे व गोलियों को खाते हुए जेल की यातनाओं को सहन करते हुए अपनी लेखनी को कभी कमजोर नही होने दिया है। पूंजीपति भारतीय समाचार पत्र् तो अंग्रेजों के सामने नतमस्तक हो गये थे यह सभी को ज्ञात है। आज हम इतने साक्त व एकजुट हैं कि हमारी लेखनी सरकार को बना व बिगाड़ सकती है इसलिए हम सरकारी नुमाइन्दों को चेतावनी देते हैं कि वे लघु एवं मध्यम समाचार पत्रें कि उपेक्षा व उत्पीड़न बन्द कर दें अन्यथा मजबूर होकर हमे उनको कुर्सी से उतारना पड़ेगा। हम अपने प्रतिनिधियों से अनुरोध करते हैं कि अपने आइसना संगठन को साक्त बनाने के लिए आथिर्क योगदान करते हुए सालाना सदस्यता शुल्‍क को नियमित रूप से कैम्प कायार्लय मे भेजकर अपना नवीनीकरण कराते रहें ताकि सदस्यता बरकरार रहे साथ ही यह अनुरोध भी है कि प्रत्येक प्रदेश व प्रत्येक जिले मे प्रान्तीय व जनपदीय सम्मेलन करके खुद को व साथ ही साथ संगठन को साक्त करें। हम यह भी प्रयास कर रहे हैं कि संगठन का एक आथिर्क कोण बनाया जाये ताकि जरूरतमंद पत्रकार को उससे मदद प्रदान की जा सके और यह तभी संभव होगा जब आप आथिर्क सहायता करें। यह भी सुझाव है कि अपने समाचार पत्रें को सुदूर ग्राम पंचायतों को लगातार भेजते रहें ताकि ग्राम प्रधानों सं समाचार पत्रें के संचालन के लिए विज्ञापन मिल सके। पत्रकारों से यह भी अनुरोध है कि कई समाचार पत्रें को प्रकाशित करने के बजाय अपने एक ही समाचार पत्र् को चुनकर प्रकाशित करने मे अपनी पूरी शक्ति लगायें व उसके कई संस्करण बनाकर अपने समाचार पत्र को जनपद व प्रदेशों मे प्रसारित करें। अब वह समय आ गया है कि हम सब को अपना रूख सुदूर गॉवों तक करना चाहिए क्योंकि गॉव के विकास से ही देश का विकास होगा व देश के विकास से ही हमारा विकास होगा।    

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